श्वेताश्वतर उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। इसका स्थान ईशादि दस प्रधान उपनिषदों में हैं। इसके वक्ता श्वेताश्वतर ऋषि हैं। इस उपनिषद् की विवेचनशैली बड़ी ही सुसम्बद्ध और भावपूर्ण है।
उपनिषद का आरंभ होता ही है एक जिज्ञासा से। मैं कौन हूं? यह संसार क्या है? और यह कौन है जो सब देख रहा है? ऋषि प्रारंभ में ही प्रश्न पूछते हैं कि क्या है संसार, अहम और ब्रह्म? यह पूछते ही वे और नए सवाल खड़ा कर देते हैं और जिज्ञासा को और बढ़ा देते हैं। इस उपनिषद् का आरंभ जगत के कारण के चिंतन से होता है: जगत का कारण क्या है? हम कहाँ से उत्पन्न हुए हैं? किसके द्वारा हम जीवन धारण करते हैं? कौन हमारा आधार है?
उपनिषद् का पूरा प्रयास रहता है उन प्रश्नों की गहराई में जाने का और समाधान करने का।
आप ध्यान में जितना गहरे जाते जाते हैं, वैसे-वैसे आपकी जो बात है वो गीतों में बदलती जाती है, स्पष्टता प्रतीकों में बदलती जाती है। और, और ज़्यादा आप गहरे चले गए तो फ़िर शब्द मौन में बदलते जाते हैं।
समझिए श्वेताश्वतर उपनिषद् आचार्य प्रशांत के साथ इस ऑनलाइन वीडियो कोर्स में ।
श्वेताश्वतर उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। इसका स्थान ईशादि दस प्रधान उपनिषदों में हैं। इसके वक्ता श्वेताश्वतर ऋषि हैं। इस उपनिषद् की विवेचनशैली बड़ी...