घर की यदि रोज़ सफ़ाई ना करें तो एक हफ्ते में ही घर गंदा हो जाता है। इसी तरह अगर मन की भी लगातार सफ़ाई ना की जाए तो उसमें भी कई प्रकार के विकार, कल्पनाएँ, आदतें जन्म लेती रहती हैं।
यह विकार फ़िर मन को ही अपना घर बना लेते हैं। कल्पनाएँ चेतना का स्थान ले लेती हैं और यथार्थ से जीवन कटता चला जाता है।
इन आदतों के पार जाने के लिए निरंतर मन की सफ़ाई की ज़रूरत होती है।
उपनिषद उस झाड़ू की तरह हैं जो मन के सारे जालों को काट देते हैं।
आचार्य प्रशांत का यह सरल कोर्स "दुःख से आज़ादी" श्वेताश्वेतर उपनिषद के अध्याय 3 पर आधारित है।
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