ध्यान को अनवरत होना पड़ेगा, लगातर। ध्यान अगर लगातार है तो बाहर जो भी कर्म होगा, वह कर्म ही ध्यान की विधि बन जाएगा।
ऐसा ध्यान ही श्रेष्ठ है जो लगातार बना रहे, चौबीस घंटे अटूट बना रहे। और जैसे ही उस पर टूटने का संकट आए तो ध्यान स्वयं ही बता दे कि इस संकट का सामना कैसे करना है। संकट का सामना करने के लिए जो कर्म किया जाएगा, वही ध्यान की विधि है।
समझिए ध्यान की वैदिक विधि को आचार्य प्रशांत के साथ - श्वेताश्वतर उपनिषद् के अध्याय 1 पर आधारित इस ऑनलाइन वीडियो कोर्स में।
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