स्थिरता की उम्मीद हम अक्सर ही दुनिया से करते हैं। यह जानते हुए भी कि यहाँ कुछ स्थिर नहीं है।
"मेरे रिश्ते हमेशा वैसे ही बने रहें जैसे पहले थे।"
"मेरी छवि लोगों के मन में अच्छी बनी रहे।"
"लोग मुझसे वैसा ही व्यवहार करें जैसा करते थे।"
पर जीवन हमारी उम्मीदों के हिसाब से नहीं गति करता। परिस्थियाँ लगातार बदलती रहती हैं और अक्सर ही उन परिस्थितियों के सामने हम खुद को कमज़ोर पाते हैं।
इस कमज़ोरी का मूल कारण क्या है? एक विचलित मन।
जब हम भीतर से स्थिर नहीं होते हैं तो परिस्थितियों के गुलाम बन जाते हैं।
यह कोर्स उन सभी के लिए है जो एक स्थिर चित्त के साथ जीवन का आनंद लेना चाहते हैं।
आचार्य प्रशांत का यह सरल कोर्स "मन में स्थिरता कैसे लाएँ?" श्वेताश्वेतर उपनिषद् के अध्याय 3 और 4 के कुछ श्लोकों पर आधारित है।
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