उपनिषद् हमारे सर्वश्रेष्ठ ग्रंथो में हैं। ऋषियों ने उपनिषदों की रचना हमारे दुःखों की मुक्ति के लिए की है। उपनिषद् के प्रत्येक श्लोक हमारे दुःखों के समूल नाश के लिए पर्याप्त हैं परंतु यह तभी सम्भव है जब हम इन श्लोकों का सही अर्थ समझें।
इस कोर्स में आचार्य प्रशांत श्वेताश्वतर उपनिषद् के श्लोकों का अर्थ बता रहें हैं जिनमें वह अहंकार, द्रष्टा और आत्मा के वास्तविक अर्थ से हमें परिचित करवाते हैं।
इसमें आचार्य जी बताते हैं कि हम संसार के प्रभावों व परिस्थितियों के खेल के अलावा कुछ नहीं होते हैं। लेकिन परिस्थितियों का पुतला होना हमारी वास्तविक पहचान नही है, वह तो संसार का ही हिस्सा है और झूठा है।
वह जो सच्चा है वह इन सबका द्रष्टा, इन सबसे अलग और अपरिवर्तनीय है। वही आत्मा है, वही हमारी असली पहचान है।
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