श्रीदुर्गासप्तशती के प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरित्र पर आधारित
देशभर में नवरात्रि तो बड़े धूमधाम से मनायी जाती है पर क्या हम इस पर्व के मर्म को समझते हैं? हम जिन दुर्गा माँ की पूजा करते हैं अर्थात् महिषासुरमर्दिनी, उनका चरित्र कहाँ से आया है? ये असुर और उनका संहार करने वाली माँ किन के प्रतीक हैं? यह असुर संहार हमारे दैनिक जीवन से कैसे सम्बंधित है?
इन सबका उत्तर है — श्रीदुर्गासप्तशती ग्रंथ। जो स्थान श्रीमद्भगवद्गीता का वेदांत में है, वही स्थान श्रीदुर्गासप्तशती का शाक्त सम्प्रदाय में है। शाक्त सम्प्रदाय हिन्दु धर्म का ही अंग है क्योंकि इसकी उत्पत्ति वैदिक परंपरा से हुई है और इसके आधार वेद हैं।
श्रीदुर्गासप्तशती में तेरह अध्याय और सात सौ श्लोक है। इन में तीन चरित्र हैं अर्थात् तीन तरह के राक्षस जो हमारे तीन तरह के अज्ञान— दम्भ, मद और मोह के प्रतीक है। इन राक्षसों का संहार करने वाली देवी प्रकृति के तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रथम चरित्र में तमोगुणी महाकाली हैं, दूसरे चरित्र में रजोगुणी महालक्ष्मी और तीसरे चरित्र में सतोगुणी महासरस्वती हैं।
आचार्य जी ने तीनों चरित्रों को बड़े सरल, सुगम भाषा में विस्तृत और रोचक तरीके से समझाया है।
देशभर में नवरात्रि तो बड़े धूमधाम से मनायी जाती है पर क्या हम इस पर्व के मर्म को समझते हैं? हम जिन दुर्गा माँ की पूजा करते हैं अर्थात् महिषासुरमर्दिनी,...