पुराण और इतिहास ग्रन्थों में कई रामगीताएँ पाई जाती हैं। प्रत्येक में वक्ता भगवान श्रीराम ही हैं, परंतु श्रोता तथा बातचीत का विषय अलग-अलग है। अध्यात्म रामायण के उत्तरकाण्ड के पांचवें सर्ग में एक रामगीता प्राप्त होती है। सीता वनवास प्रसंग के बाद एक बार जब लक्ष्मणजी ने भगवान श्रीरामचन्द्रजी से अज्ञानरूपी सागर को पार कराने वाले ज्ञानोपदेश देने की प्रार्थना की, तब श्रीरघुनाथजी ने उनको जो उपदेश दिया, वही 'रामगीता' कहलाती है।
इसी रामगीता के कुछ विशेष श्लोकों पर चर्चा कर, आचार्य प्रशांत ने पूर्ण ग्रन्थ को पढ़ने व दैनिक जीवन में आत्मसात करने का मार्ग स्पष्ट किया है।
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