कबीर साहब के लिए आचार्य जी का प्रेम तो जगज़ाहिर है। जब आचार्य जी उनके भजन या दोहे पर बात करते हैं तो आप उस जगह से कभी उठना ही नहीं चाहेंगे।
और जब वह कबीर साहब की उन साखियों पर बात करते हैं जिनमें संत कबीर ने राम से अपने संबंध को व्यक्त करने की कोशिश की है तो फिर आप पूछिए ही मत!
अब उस दिन कुछ ऐसा ही हुआ, जब सत्र शुरू हुआ तो वे काम से कम 20 दोहे पर लगातार बात करते ही गए और समय का किसी को भी पता नहीं चला।
सत्र के ख़त्म होने पर हम जानते थे कि यह शायद बीस-दिवसीय साधना की आखिरी कड़ी हो और इस कड़ी के सत्र आपको श्रीराम के मर्म के सबसे निकट लेकर जा सकते हैं।
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