भारतीय दर्शन को मोटे तौर पर दो प्रकार का कहा जा सकता है। एक ओर हैं आस्तिक दर्शन, जो वेदों को प्रमाण मानते हैं, माने वह जो कहते हैं कि हम जो भी बात कह रहे हैं वह वेदों को आधार मानते हुए कह रहे हैं। दूसरी ओर हैं नास्तिक दर्शन, जो वेदों को प्रमाण नहीं मानते हैं।
वेदों को आधार मानने का क्या अर्थ है?
वेदों में कर्मकाण्ड का हिस्सा भी है, और वेदों में उपनिषद् भी हैं। गहराई से देखेंगे तो पाएँगे कि वेदों को आधार मनाने का अर्थ उपनिषदों को आधार मानना ही है।
आस्तिक दर्शन के अंदर 6 दर्शन आते हैं: न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदांत।
आज हम आपसे बात करेंगे ‘योग’ दर्शन की।
अपने मतलब के हिसाब से लोगों ने योग को अनेकों अर्थ दे दिए हैं। एक वर्ग है जो शारीरिक हठयोग को ही योग कहने लगा है, एक वर्ग है जो तरह-तरह से साँस लेने की प्रक्रिया को योग कहने लगा है। और जो वास्तविक योग है, वह इन सभी आकर्षक विकल्पों के पीछे कहीं छिप गया है।
असली योग उपनिषदों को अपना आधार मानता है। इसलिए शायद अब आप समझ पाएँगे कि जब श्रीकृष्ण अर्जुन से योग की बात करते हैं तो उनका किस योग की तरफ इशारा था।
वास्तविक योग को समझने के लिए आज हम आपके लिए लाएँ हैं— आचार्य प्रशांत के पतंजलि योगसूत्र पर नए कोर्सेस।
इनके माध्यम से समझें असली योग को।
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