मित्र कौन? जो सुख के समय तुम्हें झिंझोड़कर जगा दे उसे मित्र कहते हैं। विपत्ति के समय तो अन्य लोग भी आकर सहायता कर देते हैं। हम अक्सर मात खाते हैं, हमारे सुख के क्षणों में जब हमें सबसे ज़्यादा सतर्क होने की ज़रूरत होती है। आज जीवन में हम जहाँ कहीं भी दुःख भोग रहे हैं उसे हमने आमंत्रित ही अपने सुख के क्षणों में किया था और धीरे-धीरे वही दुःख बनता चला गया।
हम प्रभावों के पुतले मात्र हैं। रोज़मर्रा का जीवन यदि सही रखना है तो अपने सुख के क्षणों का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा। आइये इस विषय पर विस्तार पूर्वक इस कोर्स के माध्यम से आचार्य प्रशांत द्वारा समझाने का प्रयास किया गया है।
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