हम एक जीव हैं, और जीवन हमारा चाहे जैसा हो हमें उसके ख़त्म हो जाने का डर सदैव सताता है। हम चीजों का ख़त्म होना देखते हैं। मृत्यु की घटना देखते हैं तो हम डरते हैं। इसी कारण हमारे रोज़मर्रा के कार्य डर के केंद्र से संचालित होते हैं।
पल-पल हम खोज रहे होते हैं कि डर का इलाज हमें मिल जाए और गिने-चुने तरीकों से हम जो खोजते हैं, वह और डर को आमंत्रित कर देता है। भय मुक्त हम सब जीना चाहते हैं और यही हमारा स्वभाव है।
डर को कैसे समझें कि उसके पार निकल जाएँ ?
क्या डर से मुक्ति संभव है?
इस पाठ्यक्रम के कुछ चुनिन्दा दोहे को आचार्य प्रशांत के माध्यम से सरल भाषा में समझाया गया है। जीवन को एक नई दिशा दीजिए आचार्य प्रशांत के साथ, कबीर साहब के दोहे पर आधारित इस सरल कोर्स में।
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