सामान्य जीवन में यदि बेचैनी महसूस होती है तो इससे यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि जीवन, मुक्ति की मांग कर रहा है। एक औसत मन, एक आम मन, एक निम्न कोटि का मन हमेशा डर में जीता है क्योंकि वह झूठी कामनाओं से ग्रसित है। वह छोटी कामनाओं के माध्यम से जीवन में छोटे भय इकठ्ठा करता है और आखिरी-साँस तक उन्हीं में फँसा रहता है। आम जन मानस का पूरा जीवन मात्र कर्तव्यों के पालन में ही निकल जाता है, परन्तु कर्तव्यों में भी भिन्नतायें होती हैं।
जो कर्तव्य स्वार्थ से निकलता है वह गहरे दुःख तथा भोग-विलास का कारण बनता है। श्रेष्ठ कर्म बोध से निकलता है और जीवन को आनंद के रास्ते मुक्ति की ओर ले जाता है।
कामगीता में कृष्ण-युधिष्ठिर सम्वाद के अंतर्गत, अंतिम कामना के विषय में और जीवन के बर्बाद चले जाने के भय के बारे में विस्तारपूर्वक समझाया है।
आचार्य प्रशांत द्वारा हंस गीता और कामगीता के माध्यम मानव जागरण का एक छोटा सा प्रयास इस कोर्स के माध्यम से किया जा रहा है।
हंस गीता श्लोक 29, 30, 34 और कामगीता श्लोक 8, 14, 18, 19 पर आधारित है।
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