अक्सर हम नीतियाँ तो खूब बनाते हैं परन्तु उन पर चल नहीं पाते। वजह साफ़ है, विचारों का उलझाव और स्पष्टता की कमी होती है। सोच बुरी नहीं होती, पुरानी सोच बुरी होती है क्योंकि उसमें जीवन नहीं होता बस एक मुर्दा विश्वास होता है। सोच से मुक्ति भी उसी के लिए संभव है जिसे कई तरह के नए विचार आते हों। अधिकांश व्यक्ति का जीवन एक दोहराओ मात्र है, इसलिए वह कष्ट देता है। कामी व्यक्ति विचारों का विस्तार चाहता है और अध्यात्मिक व्यक्ति जीवन में गहराई चाहता है। जीवन में गहराई मात्र ऊँचे कर्म से उद्भूत होती है।धार्मिक व्यक्ति वो होता है जो प्रतिपल नया है न कि रूढ़ियों पर चलने वाला है। नए विचार से नया कर्म उधृत होता है। उच्चतम कर्म ही समक्ष जीवन का लक्ष्य है। यह बात अलग-अलग तरीकों से समझाई गई है - कभी सांख्य दर्शन के माध्यम से तो कभी अद्वैत वेदांत के माध्यम से। इस कोर्स में आचार्य प्रशांत के माध्यम से सरल भाषा में जीवन को ऊँची अभिव्यक्ति देने के विषय में कुछ चुनिन्दा सूत्र दिए हैं।
यह कोर्स श्रीमदभगवद्गीता अध्याय 3, और 10 पर ,और अवधूत गीता अध्याय 1, श्लोक 8, 11, 42, 74 पर आधारित है।
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