कर्म क्या है? कर्म हमारी बेचैनी का ही प्रस्फुटन है। दुनिया में पाप का बढ़ना यह दर्शाता है कि कर्म गलत दिशा से उद्भूत हो रहा है। व्यक्ति मूल रूप से कामी है और आम आदमी का कर्म उसकी बेचैन कामनाओं से आता है। जिस प्रकार मधुमेह के मरीज़ की इच्छा मीठा खाने की होती है उसी प्रकार व्यक्ति की सारी इच्छाएँ उसी का नाश करने के लिए उठती हैं, अर्थात् उसे और रोगी बना देती हैं। इसलिए श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि कर्म ऐसा करो जो रोगी कर्ता को योगी कर्ता बना दे। ऐसे कर्म को एक विशेष नाम से सम्बोधित किया गया है - निष्काम कर्म।
चेतना की उच्चतम अवस्था से फ़लित कर्म को निष्काम कर्म कहते हैं। श्रीकृष्ण ने अपनी असीम संभावना से अर्जुन को गीता का यह उपदेश दिया है। गीता को उपनिषद् का सार माना गया है और उपनिषद् सनातन धर्म का केंद्र कहलाते हैं।
आचार्य प्रशांत के माध्यम से मूल अहम् वृत्ति को असफ़ल करके निष्काम कर्म तक पहुँचने के आसान मार्ग को इस कोर्स के माध्यम से उपलब्ध कराये गये हैं।
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