अक्सर प्रश्न आता है कि क्या अध्यात्म के साथ-साथ गृहस्थी सम्भव है?
क्या तुम वाकई ज़िन्दा हो?
तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह या तो तुमसे समाज करवा रहा है या फिर तुम्हारा शरीर। ‘तुम’ इन सब में कहाँ हो?
साधना क्या है?
जो काम तुमको पता है कि सही हैं तुम फिर भी उन्हें नहीं करते, उनको करना साधना है। जो काम तुमको पता है कि गलत है और फिर भी किये जाते हो, उनको रोकना साधना है।
मृत्यु का भय क्यों सताता है?
‘भय’ कल्पना और अज्ञानता से उठता है। जीवन के प्रति अंजान रहने पर ही मृत्यु का भय मालूम होता है।
ऐसे में परमहंस गीता के माध्यम से आचार्य जी ने कहा है, “ अँधेरी रात में अध्यात्म गाड़ी की हेडलाइट है, गाड़ी तुम्हारी गृहस्थी है और सड़क एक जीवन यात्रा है। अध्यात्म इसलिए चाहिए ताकि गृहस्थी अच्छी चले।”
इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु इस कोर्स के संग पुनः जीवित होने का प्रयास करें। आचार्य प्रशांत द्वारा आजगर गीता के माध्यम से जीवन को सही ढंग से जीने की कला सिखाई गई है।
परमहंस गीता अध्याय 5, श्लोक 4, 5, 18 एवं आजगर गीता श्लोक 11, 14, 16, 18, 28, 31, 33 पर आधारित है।
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