बलपूर्वक विवेकी मनुष्य को भी इन्द्रियों के सामने अक्सर हार झेलनी पड़ती है। इन्द्रियों के पीछे वृत्ति और आगे विषय बैठा है। इंद्रियांँ वस्तुयों को भोगकर सुख पाने की लालसा में रहती हैं। नतीजा, कामनाओं की अनंत दौड़! विषयों की सीमा के बीच में बैठे हुए असीम तक पहुंँचकर ही जीव साधक बन पता है। दमन-शमन, अभ्यास और वैराग्य एक साथ चाहिए है। अनेक झूठों के बीच में एक अडिग सच चाहिए है, कृष्णत्व तक पहुँचने के लिए। इसी संसार में सही निर्णय करते हुए संसार के पार जाना संभव है। आचार्य प्रशांत द्वारा इस कोर्स में कुछ प्रमुख श्लोकों के माध्यम से विवेकपूर्ण जीवन जीने हेतु सही चुनाव करने का मार्ग दर्शित किया है।
यह कोर्स श्री उत्तर गीता अध्याय 3 और 4, एवं श्रीमदभगवद्गीता अध्याय 2,6 और 7, पर आधारित है।
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