अक्सर हम संसार के पीछे भाग रहे होते हैं कुछ पा लेने के लिए। और जो भी हमें संसार से मिलता है वो संसार को वापस भी करना पड़ता है। इसी आधार पर हम खुद को अमीर या गरीब भी घोषित करते हैं। पर दोनों ही अवस्था में हम खुद को खाली ही पा रहे होते हैं। सांसारिक धन होना या न होना एक ही बराबर हो जाता है क्योंकि असली धन का हमें पता नहीं होता। भागवत पुराण के एक कहानी के माध्यम से आचार्य जी ने समझाया है कि — जीवन में पाने लायक क्या है? हमें किसे वरियता देनी चाहिए?
आगे कहानी में कृष्ण जी इंद्र की पूजा छोड़ गोवर्धन पर्वत को पूजने को कहते हैं। सभी ब्रजवासी इन्द्रोज यज्ञ छोड़ गोवर्धन पूजा की तैयारी में लग जाते हैं। इस कहानी से ये बताया जा रहा है कि हम संसार के तल के हैं पर हमें परमात्मा चाहिए, तो हमारे पास संसार ही एक माध्यम है परमात्मा तक पहुँचने का।
आचार्य जी इस कहानी के माध्यम से समझाते हैं कि कैसे प्रकृतिस्थ होकर परमात्मा तक पहुँचा जा सकता है।
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