हमें संसार के तरफ से एक सूची मिल जाती है कि किस पैमाने पे हम किसको गलत या सही ठहराते हैं। इसे हम नैतिकता कहते हैं। पर जब हम कृष्ण जी के पास जाएंँगे तो उनके जीवन में हमें बहुत सारे ऐसे कर्म दिखेंगे जो नैतिक तौर गलत भी हैं। आम संसारी मन इसे समझने में घबराएगा क्योंकि उसके पास पर्व-निर्धारित सूची है और उसके बाहर उसे कुछ दिखाई भी नहीं देता है। आचार्य जी एक कहानी के माध्यम से समझाएंँगे कि पल-पल गलत और सही का चुनाव किन पैमानों पर होना चाहिए? क्या आम नैतिकता हमारे काम की है भी या नहीं?
आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे भागवत पुराण की कथाओं का अर्थ इस सरल से कोर्स में।
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