कृष्ण जी अपने तरफ से पूरा प्रयास करते हैं कि बात बस समझ में आ जाए। जैसे हर गुरु अपने तरफ से पूरी कोशिश करता है कि कुछ भी करना पड़े, बस बात समझ में आ जाए, चाहे वो गोपियाँ हो या वो रणक्षेत्र में अर्जुन हो।
ये अनूठे प्रेम की बात है, जिसके लिए अब सब अपने हो चुके हैं। जैसे तुम्हारे ही पाँव में काँटा लगा है, तुम अपने आप के हाथ से ही हटा रहे हो। किसी और पे अहसान कर रहे हो? अवतार कौन होता है समझ रहे हो? परमात्मा अपने आप पर ही मेहरबान हुआ है। इस पर कोर्स में विस्तार से चर्चा की गई है।
अध्यात्म में साक्षी भाव का बहुत उथला अर्थ निकाला जाता है। साक्षी भाव को ऐसे देखा जाता है जैसे एक मोटा आदमी फुटबॉल के मैदान में बैठ कर खेल देख रहा हो। देखना वाला और दृश्य फिर भी एक ही तल के हैं। ग्रन्थों में जब साक्षी भाव को लेकर चर्चा होती है, तो वो दृश्य और दृष्टा के आयाम से आगे की बात कर रहे होते हैं।
साक्षी भाव का अर्थ क्या होता है?
हम अपने जीवन में साक्षीत्व किसको समझें?
आगे कृपा को लेकर चर्चा की गई है। कृपा एक ऐसा विषय है जिसके विषय में चर्चा कर पाना थोड़ा कठिन होता है। हम कृपा से वंचित क्यों रह जाते हैं?
आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे सारे प्रश्नों के उत्तर इस सरल कोर्स में।
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