मन का काम है खोजना, भटकना, प्रयत्न करना पर पाना कभी नहीं। ये मन का काम है इसी से मन का अस्तित्व है। इसके अलावा मन कुछ नहीं कर सकता है। मन की संरचना ही ऐसी होती है। मन का प्राकृतिक स्वभाव ही ऐसा होता है।
निचले तल का मन होगा तो निचले तल पर भटकेगा। ऊंँचे तल का मन हो तो ऊंँचे तल पर भटकेगा। तल बदल सकते हैं पर भटकना नहीं बदलेगा। मन बोलेगा कि बताओ कहांँ कहांँ गलती हुई मुझसे जो मैं भटका, मैं हर गलती को ठीक करूंगा लेकिन मन एक ज़िद्द पर अड़ा रहेगा कि पाना तो मुझे अपने प्रयास से ही है और यही मन की मूर्खता है।
मन की और क्या क्या मूर्खता बताते हैं बुल्लेशाह यह हम जानेंगे आचार्य प्रशांत संग इस कोर्स में।
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