प्रकृति में जिसको जैसा बताया गया वह वैसा ही चल रहा है। सूरज अपने काम में लगा हुआ है जैसे उसे बताया गया है, चंद्रमा अपने काम में लगा हुआ है, जानवर भी अपने काम में लगे हुए हैं, पेड़-पौधे भी। कोई रुक कर विचार नहीं करने लग जाते हैं। केवल मनुष्य ही है जो रुक कर विचार करते हैं, बातों को घुमाते हैं, कभी खुद घूम जाते हैं। जितने विचारों से नजदीकी बनाते हैं प्रकृति से उतने दूर हो जाते हैं। जो कुछ भी है, सब सरल है। इनको कठिन भी हमने ही बना रखा है। एक कहानी के माध्यम से आचार्य जी समझाते हैं कि हमारी जो हालत है उसका ज़िम्मेदार कौन है? कैसे इससे निजात पाया जा सकता है?
आगे द्रौपदी के अपमान के ऊपर चर्चा की गई है जिसमें कृष्ण जी आकर द्रौपदी को बचाते हैं। आचार्य जी समझाते हैं कि हम सुरक्षा के लिए बड़े से बड़ा और बलवान से भी बलवान कुछ रख लें अपने जीवन में तो भी कोई फायदा नहीं है। अक्सर हम ऐसा ही करते हैं, अपनी सुरक्षा में जितना हो सके संसार से जमा कर लेते हैं पर जीवन के अंत तक कुछ भी सुरक्षा नहीं दे पाता है। तो आखिर इसका उपाय क्या है? सुरक्षा की उम्मीद किन से रखें? सुरक्षा की उम्मीद रखनी भी है या नहीं?
आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे सारे प्रश्नों के उत्तर इस सरल कोर्स में।
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