जो रूप हैं अष्टावक्र, जो जीव हैं, जो व्यक्ति हैं, उनके बारे में स्पष्टतया कुछ ज्ञात नहीं है। कोई कहता है कि कृष्ण पूर्व के थे, कोई कहता है कि उनकी गीता भगवद्गीता के बाद की है। कुछ लोग उनका काल और बाद का रखते हैं, आदि शंकर के आस-पास का, और एक-दो लोगों ने तो उन्हें मध्य युग में भी स्थापित कर दिया है पर इन सबसे कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं है। अष्टावक्र समय और स्थान से आगे की बात हैं। अष्टावक्र सारी कथा-कहानियों से आगे की बात हैं। इसीलिए उनकी गीता संजोई गई। उनकी गीता अक्षर-अक्षर जीवित है, लेकिन उनकी जीवनी नहीं संजोई गई।
जो व्यक्ति व्यक्तित्व की सीमाओं का अतिक्रमण कर गया हो, उनके जन्मस्थान की बात करना, उनके इतिहास की बात करना, उनके जीवन की घटनाओं की बात करना, यह सब ज़रा गैर ज़रूरी हो जाता है, गैर ज़रूरी ही नहीं भ्रामक हो जाता है।
बहुत कहानियाँ हैं अष्टावक्र से जुडी हुई, उन कहानियों में रस है। वह सब कहानियाँ कुछ-न-कुछ संदेश देती हैं। कोई पक्का नहीं है कि वह घटनाएँ यथार्थ में घटीं, कि नहीं घटीं, और इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता। उन घटनाओं से हमें एक झलक मिलती है, उन घटनाओं से कोई खिड़की खुलती है, कुछ पता चलता है। यह आवश्यक है कि आप यूँ शुरू करें कि जैसे किसी कथा से आपका कोई सरोकार न हो, आप यूँ शुरू करें कि जैसे अष्टावक्र से आज पहली बार मिल रहे हों, आप यूँ शुरू करें कि जैसे आप अष्टावक्र नाम से भी परिचित न हों, कुछ नहीं जानते आप।
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