ब्रह्मवर्ता माने क्या? जो तुमने अर्जित ही नहीं किया है, उसके बारे में गपशप कर रहे हो। तुम्हारा स्थूल पदार्थों से जी नहीं भरा तो तुम सूक्ष्म विचारों को भोगने पहुँच गए हो। तुम्हारा उससे भी जी नहीं भरा तो अब तुम तन और मन से आगे जो ब्रह्म है, तुमने उस पर भी हाथ साफ़ कर दिया। इस विषय पर कोर्स में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है।
आगे हम देखेंगे, शरीर के प्रकार। शास्त्रीय तौर पर तीन शरीर होते हैं—स्थूल, सूक्ष्म और कारण। कारण, जहाँ से बाकी सब कुछ उपजता है। वह संसार का मूल है पर वह आत्मा नहीं है। कारण से यहाँ आशय है जो मूल अहंता की वृत्ति है। वृत्तियों से दो चीज़ें उठती हैं— विचार और कर्म। जब स्थूल हो तो उसे हम कर्म कहते हैं और जब सूक्ष्म हो तो उसे कहते हैं विचार। आदिशंकराचार्य कह रहे हैं कि कार्य में कारण अनुगत है, तो इससे वे क्या समझाना चाह रहे हैं? ये हम इस कोर्स में समझेंगे।
वैसे तो यह ग्रंथ हज़ारों वर्ष पुराना है परन्तु आचार्य प्रशांत द्वारा की गई व्याख्या इसको आज की पीढ़ी के लिए अत्यंत सरल व प्रासंगिक बना देती है। अपरोक्षानुभूति के प्रकाश में अपने जीवन को एक नई दिशा दीजिए, आचार्य प्रशांत के साथ इस सरल कोर्स में।
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