एक वैज्ञानिक और संन्यासी में इतना ही अंतर होता है कि वैज्ञानिक बाहरी तत्वों के बारे में जान रहा होता है और संन्यासी भीतर देख रहा होता है कि जो देख रहा है वो कौन है।
वैज्ञानिक और संन्यासी में एक बात साझा होती है— जानना। दोनों लगातार जान रहे होते हैं। मगर आत्मज्ञान या उजाला वो है जो आप की मुक्ति में सहायक बने और जो आप को बंधनों से मुक्त रखे और आप लगातार जानते हुए आनदं की ओर बढ़ें।
आत्मा और अहंकार क्या है?
कामनाओं का अंत क्या संभव है?
क्या माया से बचा जा सकता है?
यह सारे सवाल के जवाब आप को चौंका देंगे अगर आप इन्हें जानेंगे। वैसे तो यह ग्रंथ हज़ारों वर्ष पुराना है परन्तु आचार्य प्रशांत द्वारा की गई व्याख्या इसको आज की पीढ़ी के लिए अत्यंत सरल व प्रासंगिक बना देती है। अपरोक्षानुभूति के प्रकाश में अपने जीवन को एक नई दिशा दीजिए आचार्य प्रशांत के साथ इस सरल कोर्स में।
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