श्वेताश्वतर उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। इसका स्थान ईशादि दस प्रधान उपनिषदों में हैं। इसके वक्ता श्वेताश्वतर ऋषि हैं। इस उपनिषद् की विवेचनशैली बड़ी ही सुसम्बद्ध और भावपूर्ण है।
इसका आरंभ जगत के कारण के चिंतन से होता है: जगत का कारण क्या है? हम कहाँ से उत्पन्न हुए हैं? किसके द्वारा हम जीवन धारण करते हैं? कौन हमारा आधार है?
इस प्रकार प्रथम अध्याय में जगत के कारण का चिंतन कर ध्यान के अभ्यास को ही उसके साक्षात्कार का साधन बताया गया है।
यह पुस्तक प्रथम अध्याय पर आचार्य प्रशांत के प्रवचनों का संकलन है।
Index
1. क्या हैं संसार, अहम् और ब्रह्म?2. ध्यान देता है स्पष्टता3. स्वयं को जानो, सत्य को जानो 4. ज्ञान और भोग साथ नहीं चलते5. सत्य: न तुम, न तुम्हारा संसार6. जो दिख रहा है, जो देख रहा है, और जो मुक्त है