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जाका गला तुम काटिहो

जाका गला तुम काटिहो

दूध, माँस, हिंसा
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₹203
Paperback
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Book Details

Language
hindi
Print Length
603

Description

शाकाहार तभी सार्थक है जब वह आत्मज्ञान से फलित हो। संस्कारगत आया हुआ शाकाहार बड़ा व्यर्थ है।

अध्यात्म एक बूटी है जिसके फायदे हज़ार हैं। सच आएगा जीवन में तो अहिंसा भी आएगी, अवैर भी आएगा, अपरिग्रह भी आएगा, अस्तेय भी आएगा। जानवर कट ही इसलिए रहे हैं क्योंकि आदमी के जीवन में सच नहीं है।

हम जानते ही नहीं हैं कि 'हम हैं कौन'? हम जानते ही नहीं हैं कि ‘खाना’ माने होता क्या है!

हम उपभोगवादी युग में जी रहे हैं। जो कुछ भी दिख रहा है, वो हमारे लिए बस भोग की एक वस्तु है। वो इसलिए, क्योंकि ‘अध्यात्म’ को तो हमने कूड़ा-करकट समझकर के बिलकुल फेंक दिया है।

जब आप अध्यात्म को फेंक देते हो ‘कूड़ा’ जानकर, तो जीवन में ज़बरदस्त अपूर्णता आ जाती है। उसी अपूर्णता से फलित होता है माँसाहार।

Index

1. chapter - - -1 2. Chapter --1 3. Chapter second edited 4. Chapter -1 5. Second chap 6. after second
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