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डर

डर

सहायता की प्रतीक्षा व्यर्थ है
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Book Details

Language
hindi

Description

अपूर्णता का विचार ही भय का जन्मदाता है।

अविवेकी मन उस विचार पर विश्वास कर भयभीत हो उठता है और अपूर्णता के उपचारस्वरूप पाशविक वृत्तियों का अवलम्बन कर लेता है। जिसके कारण उसे सहस्त्र दुःखों से गुज़रना पड़ता है।

आचार्य प्रशांत इन संवादों के माध्यम से अपूर्णता के विचार को अकिंचित्कर बता कर उसका तिरस्कार कर एक विवेकपूर्ण जीवन जीने का सन्मार्ग बताते हैं।

Index

1. डर (भाग-१): डर की शुरुआत 2. डर (भाग-२): डर, एक हास्यास्पद भूल 3. डर (भाग-३): डर से मुक्ति 4. मैं डरता क्यों हूँ? 5. अकेलेपन से डर क्यों लगता है? 6. मन नए से डरता है
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