भाषा सीमित है, और इन सीमाओं कटु बोध जितना आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते समय होता है उतना और कभी नहीं होता। प्राचीन काल से ही मनुष्य ने ईश्वरीय अनुकंपा को शब्दों द्वारा दूसरों तक पहुँचाने के निरंतर प्रयास किये हैं, परन्तु सदी-दर-सदी संतों व रहस्यदर्शियों के सरलतम वचनों को भी मनुष्य ने अपने अहंकार की बलि चढ़ा दिया है।
यह पुस्तक आचार्य प्रशांत के शब्दयोग सत्रों की एक ऐसी श्रृंखला है जो मन से हर प्रकार की भ्रांतियों की सफाई करती है। आचार्य जी के सरल वक्तव्यों के सामने सैद्धांतिक जटिलता कोई ठौर नहीं पाती। यह ग्रन्थ जहाँ एक तरफ सामान्यतः निजी कहे जाने वाले विषयों जैसे भावुकता, प्रेम, और कर्ता-भाव की बात करता है तो दूसरी ओर समय, सत्य, और आत्म जैसे दार्शनिक विषयों पर भी प्रकाश डालता है।
इस पुस्तक का उद्देश्य पाठक के मन को ज्ञान से भरना नहीं है। यह विरल ग्रन्थ तो मानवता को ज्ञान के उस तमाम बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए है जो अज्ञान से भी ज़्यादा खतरनाक है।
जिन्हें ज्ञान से मुक्ति चाहिए हो, वे ही श्रद्धापूर्वक इस ग्रन्थ में प्रवेश करें।
Index
1. भावुकता हिंसा है, संवेदनशीलता करुणा2. संवेदनशीलता, भावुकता नहीं3. जो समय में है वो समय बर्बाद कर रहा है4. काल और कालातीत5. त्याग – छोड़ना नहीं है, जागना है6. छोड़ना नहीं, पाना